Sunday, January 23, 2011

तेरी आँखों का यह दर्पन अच्छा लगता है

तेरी आँखों का यह दर्पन अच्छा लगता है
इसमें चेहरे का अपनापन अच्छा लगता है

तुंद हवाओं तूफ़ानों से जी घबराता है
हल्की बारिश का भीगापन अच्छा लगता है

वैसे तो हर सूरत की ही अपनी सीरत है
हमको तो बस तेरा भोलापन अच्छा लगता है

पहले तो तन्हाई से हमको डर लगता था
अब तो न जाने क्यों सूनापन अच्छा लगता है

हमने इक दूजे को बाँधा प्यार की डोरी से
सच्चे धागों का यह बंधन अच्छा लगता है

बोलें कड़वे बोल न हम कुछ फीका सुन पाएँ
ऐसा ही गूँगा-बहरापन अच्छा लगता है

दाग़ नहीं है माथे पे रहमत का साया है
‘चाँद’ के चेहरे पर ये चंदन अच्छा लगता है

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