Saturday, August 14, 2010

किसी के प्यार के क़ाबिल नहीं है

किसी के प्यार के क़ाबिल नहीं है
मुहब्बत के लिए ये दिल नहीं है

बड़ा ही ग़मज़दा बे आसरा है
जे कुछ भी हो मगर बुज़दिल नहीं है

मुहब्बत में बला की चोट खाई
बहुत तड़पा है पर घायल नहीं है

ये परछाई किसी हरजाई की है
मेरा साया तो ये बिल्कुल नहीं है

मेरी आँखों से गुमसुम रोशनी है
मेरी नज़रों से वो ओझल नहीं है

मुझे जो जान से है बढ़ के प्यारा
क्यों मेरे दर्द में शामिल नहीं है

मुहब्बत चाँद से वो क्या करेगी

किस तरह ख़ाना ख़राब अब फिर रहे हैं हम जनाब

किस तरह ख़ाना ख़राब अब फिर रहे हैं हम जनाब
नींद में भी सो न पाएँ देखते रहते हैं ख्वाब

वो हसीं हैं हमने माना और हैं वो पुर शबाब
हम भी उनसे कम नहीं हैं दिल के हैं यारों नवाब

दिल नहीं है अपने बस में न ही बस में है दिमाग़
दर्द हमको दे दिए हैं इस जहाँ ने बेहिसाब

तुझको फुरसत से बनाया है ख़ुदा ने ख़ुशजमाल
फूल-सा चेहरा तेरा और मस्त आँखें लाजवाब

लोग कहते हैं शराबी ये ग़लत इल्ज़ाम है
जिस क़दर आँसू पिये हैं उस से कम पी है शराब

तू अँधेरे में छुपी है ऐ मेरी जाने ग़ज़ल
चाँद हूँ आखिर तुझे मैं ही करूँगा बे-नकाब

कच्चा पक्का मकान था अपना

कच्चा पक्का मकान था अपना
जिसमें सारा जहान था अपना

मैं था और साथ मेरी तन्हाई
माज़ी बस दरमियान था अपना

तुम भी थे साथ और ज़माना भी
एक कड़ा इम्तिहान था अपना

क्यों न उसको पुकारता यारब
सूना सूना जहान था अपना

"चाँद" था और ख़ला की वीरानी
एक फ़क़त आसमान था अपना

इश्क़ का कारोबार करते थे

इश्क़ का कारोबार करते थे
ग़म की दौलत शुमार करते थे

क्या तुम्हें याद है या भूल गये
हम कभी तुमसे प्यार करते थे

काँटे भरते थे अपने दामन में
फूल उन पर निसार करते थे

बनके मजनू जुदाई में उनकी
पैरहन तार तार करते थे

अब तो बस इतना याद है के उन्हें
याद हम बेशुमार करते थे

याद में तेरी रात भर तन्हा
"चाँद" तारे शुमार करते थे.

आ रहा है देखना जश्ने-बहारां आएगा

आ रहा है देखना जश्ने बहारां आएगा
चाँद तारे माँग में उसकी कोई भर जाएगा

नाच उठेगी खुशी से झूम कर वो महजबीं
उसके आँगन में कोई जुगनू सजा कर जाएगा

रात भर सरगोशियाँ होतीं रहेंगी देर तक
उसके कानों में कोई मिसरी का रस भर जाएगा

आज तनहाई का आलम है तो कल होगा मिलन
सुरमुई आँखों में वो खुशियों के जल भर जाएगा

भूल जाएगी वो अपना ग़म मिलन की रात में
उसके ज़ख़्मों पर वो मरहम का असर कर जाएगा

प्यार से अपने भरेगा उसकी नस-नस में ख़ुमार
देखना तन- मन को वो चंदन बना कर जाएगा

बंद पलकों में तलाशेगा ख़ुद अपने अक्स को
"चाँद" जाने कितने वो सपने सजा कर जाएगा

आज़माए को आजमाएँ क्यों

हम उन्हें फिर गले लगाएँ क्यों
आज़माए को आजमाएँ क्यों

जब यह मालूम है कि डस लेगा
साँप को दूध फिर पिलाएँ क्यों

जब कोई राबता नहीं रखना
उनके फिर आस -पास जाएँ क्यों

हो गया था मुग़ालता इक दिन
बार -बार अब फ़रेब खाएँ क्यों

जब के उनसे दुआ- सलाम नहीं
मेरी ग़ज़लें वो गुनगुनाएँ क्यों

"चाँद" तारों से वास्ता है जब
हम अँधेरों को मुँह लगाएँ क्यों

अम्बर धरती उपर नीचे आग बरसती तकता हूँ

अम्बर धरती उपर नीचे आग बरसती तकता हूँ
सोच रहें हैं दुनिया वाले फिर भी कैसे जिंदा हूँ

मैंने ख़ुशियाँ बेच के सारी दर्द ख़रीदे हैं यारो
अपनी इस दौलत के सदके मैं पहचाना जाता हूँ

मेरे जैसा जिंदादिल भी होगा कौन ज़माने में
ख़ुद को दिल का रोग लगा के हरदम हँसता रहता हूँ

जिन से मिट्टी का रिश्ता है क्यों वोह धूल उड़ाते हैं
जो हैं मेरी जान के दुश्मन मैं तो उनका अपना हूँ

जब से मौत क़रीब से देखी है मैंने इन आँखों से
चाप किसी के क़दमों की मैं हरदम सुनता रहता हूँ

एक बुलबुला हूँ पानी का और मेरी औक़ात है क्या
जानता हूँ मैं वक़्त के हाथों एक बेजान खिलौना हूँ

जिसने गहरे अँधियारे के आगे सीना ताना है
मैं अँधियारी रात में रौशन तन्हा "चाँद" का टुकड़ा हूँ

अपनी नज़र से आज गिरा दीजिए मुझे

अपनी नज़र से आज गिरा दीजिए मुझे
मेरी वफ़ा की कुछ तो सज़ा दीजिए मुझे

यक-तरफ़ा फ़ैसले में था इंसाफ़ कहाँ का
मेरा क़ुसूर क्या था बता दीजिए मुझे

दो जिस्म एक जान है बीमार हैं दोनों
उसको शफ़ा मिलेगी दुआ दीजिए मुझे

मैं जा रहा हूँ आऊँगा शायद ही लौट कर
ऐसे न बार-बार सदा दीजिए मुझे

इस दौर में अब इब्ने-मरयम नहीं मिलते
बस कान में अंजील सुना दीजिए मुझे

रोते हुए बच्चे ने माँ-बाप से कहा
बस चाँद आसमान से ला दीजिए मुझे

सोया रहा हूँ चाँद मैं ग़फ़लत की नींद में
रुख़सत का आया वक्त जगा दीजिए मुझे

अपने तो हौसले निराले हैं

अपने तो हौसले निराले हैं
आस्तीनों में सांप पाले हैं

बन न पाये वोह हमखयाल कभी
हम निवाले हैं हम पियाले हैं

कुछ अजब सा है रखरखाव उनका
तन के उजले हैं मन के काले हैं

जिन घरों की छतों में जाले हैं
उनके दिन कब बदलने वाले हैं

हैं दुआयें मेरे बुजुर्गों की
मेरे चारों तरफ उजाले हैं

दर्दे दिल का बयाँ करूँ किस से
जबकि सब के लबों पे ताले हैं