Saturday, August 14, 2010

किस तरह ख़ाना ख़राब अब फिर रहे हैं हम जनाब

किस तरह ख़ाना ख़राब अब फिर रहे हैं हम जनाब
नींद में भी सो न पाएँ देखते रहते हैं ख्वाब

वो हसीं हैं हमने माना और हैं वो पुर शबाब
हम भी उनसे कम नहीं हैं दिल के हैं यारों नवाब

दिल नहीं है अपने बस में न ही बस में है दिमाग़
दर्द हमको दे दिए हैं इस जहाँ ने बेहिसाब

तुझको फुरसत से बनाया है ख़ुदा ने ख़ुशजमाल
फूल-सा चेहरा तेरा और मस्त आँखें लाजवाब

लोग कहते हैं शराबी ये ग़लत इल्ज़ाम है
जिस क़दर आँसू पिये हैं उस से कम पी है शराब

तू अँधेरे में छुपी है ऐ मेरी जाने ग़ज़ल
चाँद हूँ आखिर तुझे मैं ही करूँगा बे-नकाब

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